भगवान सगुण साकार हैं
God has a beautiful Form
बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारम्
विभद्वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम्।
रन्ध्रान् वेणोर्धरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै-
र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः।।
(श्रीमद् भागवत)
(श्रीकृष्ण ग्वालबालों के साथ वृन्दावन में प्रवेश कर रहे हैं । उनके सिर पर मयूरपिच्छ है और कानों पर कनेर के पीले पीले पुष्प ; शरीर पर सुनहला पीताम्बर और गले में पाँच प्रकार के सुगन्धित पुष्पों की बनी वैजयन्ती माला है । रंगमंच पर अभिनय करते हुए श्रेष्ठ नट का - सा क्या ही सुन्दर वेष है । बाँसुरी के छिद्रों को वे अपनें अधरामृत से भर रहे हैं । उनके पीछे - पीछे ग्वालबाल उनकी लोकपावन कीर्ति का गान कर रहे हैं । इस प्रकार वैकुण्ठ से भी श्रेष्ठ वह वृन्दावन धाम उनके चारणचिन्हों से और भी रमणीय बन गया है ।
श्रीमद भागवत १०-२१-०५
भगवान के ऐसे सुन्दर मनोहर रूप पर भला कौन नहीं मोहित होगा। 💘💓
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