कर्म का सिद्धांत -The Law of Karma


कर्म का सिद्धांत  
The Law of Karma





हम अक्सर परेशान रहते हैं और उसके लिये सदा भगवान को कोसते रहते हैं। ना जाने वह हमें क्यों परेशान करता रहता है।

फिर सब कहते भी तो यही हैं कि भगवान की इच्छा से ही सब होता है। हमारी इच्छा से कुछ नहीं होता।

भगवान की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। आदि-आदि।

तो क्या सचमुच ही भगवान हमारे कार्यों का कर्ता है। हम कुछ नहीं करते।

कर्ता कौन


यदि भगवान ही सब कुछ करता है तो फिर हम सुख और दुख क्यों भोग रहे हैं।

और यदि हम ही अपने कर्मों के कर्ता हैं तो फिर भगवान कहाँ से बीच में आ गये खामखाँ।

तो सच जान लेते हैं-

हम भगवान को कर्ता कहते हैं क्योंकि भगवान ने ही हमें कार्य करने की, चिंतन की शक्ति दी।

100 प्रतिशत सहीं बात।

किन्तु इसके आगे वह कुछ नहीं करता। बस हाथ में कलम लिये देखता रहता है कि हम क्या करते हैं ताकि वह नोट करे और उसी के अनुसार हमें फल प्रदान करे।

तो वह फैसला हम पर छोड़ता है कि हम किस प्रकार का कर्म करेंगे।


अच्छा कर्म- बुरा कर्म



अच्छा कर्म या बुरा कर्म । पाप या पुण्य।

यह फैसला केवल और केवल हमारा होता है। और इसीलिये हमारे किये गये कर्म का फल हमें भोगना पड़ता है।


इसे की कर्म का सिद्धांत दी थ्योरी ऑफ कर्मा कहते हैं।


जो जैसा कर्म करेगा वैसा ही फल पायेगा।



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